MSO के वेबिनार में ‘स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिमों के योगदान’ पर हुई चर्चा

नई दिल्ली: देश के प्रमुख छात्र और युवा संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (MSO) ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रविवार को ‘स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिमों का योगदान’ के विषय पर’ वेबिनार आयोजित किया। जिसमे मुख्य वक्ता के तौर पर दारुल कलाम दिल्ली के अध्यक्ष अल्लामा अखतर यासीन मिसबाही और जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली से रिसर्च स्कॉलर अशरफुल कौसर मिसबाही ऑनलाइन शामिल हुए। इसके अलावा देश भर से छात्रों, शिक्षकों और उलेमाओं ने भी हिस्सा लिया।

वेबिनार की शुरुआत करते हुए जामिया स्कॉलर अशरफुल कौसर मिसबाही ने देश के ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ के कालखंड के बारे में जानकारी दी। उन्होने बताया कि उर्दू तारीख में स्वतंत्रता आंदोलन दो हिस्सों में है। पहला हिस्सा जंगे आजादी का है। जो 1857 की जंग से जुड़ा है। तो दूसरा हिस्सा तहरीक ए आजादी है। उन्होने कहा कि जंगे आजादी खून बहाकर लड़ी गई है। वहीं तहरीक ए आजादी पसीना बहाकर लड़ी गई है। दोनों ही में मुस्लिमों का योगदान अहम है। मुस्लिमों ने देश को आजाद कराने के लिए न सिर्फ पसीना बल्कि अपना खून भी बहाया। उन्होने स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास से मुस्लिमों को एकतरफा नकार देने पर दुख जताया। उन्होने कहा कि मुस्लिमों के बिना स्वतंत्रता आंदोलन का उद्धरण अधूरा है।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली से रिसर्च स्कॉलर अशरफुल कौसर मिसबाही

वहीं अल्लामा अखतर यासीन मिसबाही ने देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े छात्रों, शिक्षकों और उलेमाओं को संबोधित करते हुए कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की जंग मुस्लिमों की तरफ से जंगे आजादी का ऐलान था। जिसके बारे में नेशनल अकाईव दिल्ली और नेशनल अकाईव पाकिस्तान भरी पड़ी हुई है। उन्होने बताया कि डेढ़ लाख से ज्यादा पन्ने जंगे आजादी के बारे में है। जिनको अब तक नहीं छुआ गया है। उन्होने कहा, इस बात से ही ‘स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिमों के योगदान’ का अंदाजा लगाया जा सकता है। अल्लामा ने बताया कि मुस्लिमों ने 1764 में ही अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू कर दी थी। ये नवाब जंग सिराजुद्दौला ने शुरू की थी। जिसके बाद 1774, 1799 में दूसरे नवाबों ने भी अंग्रेज़ो से जंग लड़ी। जिनमे टीपू सुल्तान का नाम प्रमुख है।

उन्होने कहा, 1857 की जंग की शुरुआत 1854 में अवध पर मुस्लिमों के कब्जे के साथ ही शुरू हो गई थी। जो आखिर में दिल्ली पहुँचकर खत्म हुई। जहां मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को हिंदूस्थान का शहँशाह बनाया गया। हालांकि इससे 10 मई 1857 को मेरठ में कारतूसों को लेकर सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। इसके अगले दिन वे दिल्ली पहुंचे थे। ये जंगे आजादी साढ़े चार महिना चली थी। इस दौरान शाहजहांपुर में मुस्लिम हुकूमत भी कायम की गई थी। जिसे रियासत ए मुहम्मदी नाम दिया गया था। जंगे आजादी के प्रमुख उलेमाओ में हजरत शाह अब्दुल अजीज देहलवी, अल्लामा फजले हक खेराबादी, मौलाना अब्दुल शाह मद्रासी, मुफ्ती इनामुल्लाह, मौलाना अब्दुल सुबहानी आदि का नाम शामिल है।

अल्लामा मिसबाही ने स्वतंत्रता आंदोलन के दूसरे हिस्से यानि तहरीक ए आजादी पर रोशनी डालते हुए कहा कि काकोरी, जालियावाला बाग, और चोराचोरी कांड को छोड़ दिया जाये तो तहरीक ए आजादी में खून का छींटा भी नहीं है। ये तहरीक सिर्फ पसीना बहाकर लड़ी गई है। जिसके प्रमुख किरदार मौलाना हसरत मोहानी, मौलाना फिरंगी महली, मौलाना जौहर, मौलाना शौकत रहे। उन्होने कहा कि आज जिस तरह से ‘स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिमों के योगदान’ को भुला दिया गया है। वह एहसानफरामोशी नहीं बल्कि नमक हरामी है। उन्होने कहा, आज जो लोग मुस्लिमों से राष्ट्रवाद और देशभक्ति के सबूत मुस्लिमों से मांग रहे है। उनके बाप-दादा आजादी की जंग के दौरान घरों में दुबके हुए थे। उन्होने कहा कि मुस्लिमों को अपनी तारीख देश और दुनिया के सामने लाना चाहिए। अपनी आने वाली नस्लों को इस तारीख का हवाला देना चाहिए। इसके साथ उर्दू, अरबी और फारसी में लिखे आजादी की तारीख को हिन्दी, इंग्लिश और अन्य जुबानों में अनुवाद किया जाना चाहिए। इन अनुवाद को ऑनलाइन भी उपलब्ध कराना चाहिए। अंत में एमएसओ अध्यक्ष शुजात अली कादरी ने अल्लामा अखतर यासीन मिसबाही और अशरफुल कौसर मिसबाही सहित वेबमिनार में शामिल होने वालों का धन्यवाद किया।

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