MSO के ज़ेर-ए-इंतिज़ाम यौमे आज़ादी के अवसर पर आयोजित हुआ शानदार कार्यक्रम

कैसरगंज/बहराइच

मुस्लिम स्टूडैंटस आर्गेनाईज़ेशन आफ़ इंडिया के ज़ेर-ए-एहतिमाम मदरसा बरकात ए रज़ा कैंसर गंज में यौम-ए-आज़ादी के मौके पर जंग-ए-आज़ादी में मुसलामानों के किरदार के मौज़ू पर सेमिनार का इनइक़ाद किया गया। इस सेमिनार की सदारत MSO बहराइच के सदर सिराज अली क़ादरी ने की।

सेमिनार में ख़िताब करते हुए मौलाना रिज़वान (जामिया नूरिया) ने कहा कि हिंदुस्तान को तवील जद्द-ओ-जहद के बाद आज़ादी की नेअमत हासिल हुई, जिसके लिए हमारे बुजरुगों ने ज़बरदस्त क़ुर्बानीयों का नज़राना पेश किया।मुस्लिम क़ौम ही थी जिसने सबसे पहले आज़ादी का बिगुल बजाया जिसने मुस्लिम तहरीकों को जन्म दिया1857मैं सबसे पहले उल्मा ने तहरीक चलाई और इस के बाद अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ मुल्क भर में बग़ावत शुरू हो गई।आज़ादी की बुनियाद रखने वाले मुसलमान ही थे।और इसी बुनियाद को आगे बढ़ाते हुए तमाम क़ौम के लोग आज़ादी की तहरीक से जुड़ते चले गए और बिलआख़िर मुल्क आज़ाद हुआ.

उन्होंने कहा कि इस हक़ीक़त को कोई नहीं झुटला सकता है कि आज़ादी की लड़ाई में सबसे ज़्यादा क़ुर्बानी मुस्लमानों ने दी है।जब अंग्रेज़ों ने मुल्क पर क़बज़ा कर लिया था,उस वक़्त कोई भी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ खड़े होने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। ऐसे वक़्त में उल्मा किराम आगे आए और जिहाद का फ़तवा दिया। जिसकी वजह से उन्हें सख़्त क़ैद व बंद की मुसीबत बर्दाश्त करनी पड़ीं।लेकिन उल्मा किराम ने जो तहरीक चला दी थी। इस की लौ बुझने वाली नहीं थी और ना रुकने वाली थी इस तहरीक को मुसलमानों ने अपने पाकीज़ा लहू से सींच कर आज़ादी के मुक़ाम तक पहुँचाया जिस की वजह से आज हम आज़ाद हवा में साँसें ले रहे हैं.

सिराज अली क़ादरी ने अपने ख़िताब में कहा कि मुसलमान ही थे जिन्हों ने इन्क़िलाब ज़िंदाबाद, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,अंग्रेज़ों भारत छोड़ो जैसे वलवला अंगेज़ नारे देकर जंग आज़ादी की शम्मा रोशन की थी।उन्होंने कहा कि मुसलमान ही थे जिन्हों ने अंग्रेज़ों से मुकम्मल आज़ादी का मुतालिबा किया था। जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था और हज़ारों उल्मा को फांसी पर लटकाया गया था।

मुसलमान इस सरज़मीन की इज़्ज़त बचाने के लिए किसी भी क़ौम और फ़िरक़े से ज़्यादा बढ़ चढ़ कर जंग आज़ादी में हिस्सा लिए और अपने लहू से इस सरज़मीन को लाला-ओ-ज़ार किया तब कहीं जा कर इस सोने की चिड़िया को अंग्रेज़ों के तौक़-ए-गु़लामी से निजात मिली। सेमिनार का इख़तताम राष्ट्र गान और मुल्क में अमन-ओ-अमान की दुआ पर हुआ।

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