मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन के राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन का पहला दिन
आतंकवाद और वहाबी विचारधारा का भरपूर विरोध, युवाओं को देश निर्माण एवं मुख्यधारा में लाने का प्रयास
लखनऊ। भारत में क़रीब एक लाख सूफ़ी और उदार मत के मुस्लिम छात्र युवाओं के संगठन के मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन यानी एमएसओ के राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन के पहले दिन आतंकवाद और इसके लिए ज़िम्मेदार वहाबी विचारधारा का भरपूर विरोध किया गया और यह स्वीकार किया गया कि इससे लड़ने के लिए सूफ़ीवाद ही एकमात्र मार्ग है। युवाओं को देश निर्माण में लगाए जाने के लिए उन्हें ना सिर्फ़ वहाबी विचारधारा को समझना है बल्कि बहुसंख्यक समुदाय के साथ संवाद बढ़ाकर स्वयं को मुख्यधारा में लाना है। सम्मेलन के पहले दिन वक्ताओं ने मुख्य तौर पर इसी विचार को रखा।
सम्मेलन के पहले दिन मेहमानों का स्वागत करते हुए एमएसओ के यूपी प्रदेश अध्यक्ष अबु अशरफ जीशान ने कहाकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ने एक व्यक्ति में सूर्य, नदी एवं धरती के गुण पैदा करने की नसीहत की। उन्होंने कहाकि इससे आपमें नरमी, झुकाव एवं रहम का गुण पैदा होता है जो मुस्लिम होने के लिए आवश्यक तत्व हैं। उन्होंने कहाकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ने जिस गुणों का ज़िक्र किया है वह ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ग़रीब नवाज़ में देखे जा सकते हैं और भारत सूफ़ीवाद का घर है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि 1857 की क्रांति में प्राणों की आहूति देने वाले सूफ़ी संतों का इतिहास जमा किए जाने की आवश्यकता है।
वैश्विक शांति में भारत को लीडर बनाएं सूफ़ी युवा- मौलाना सलमान फरीदी (ओमान)
उदघाटन सत्र के मुख्य वक्ता मौलाना सलमान फरीदी (ओमान) ने अपने बयान मे कहा कि इस्लाम अमन और शांति का मज़हब है जिसका आतंकवाद और कट्टरता से कोई संबंध नहीं है, एक मुसलमान हमेशा से उन विचारधारा के विरोध मे रहा है, एमएसओ भी कट्टरता के विरोध मे नौजवानो के बीच मे काम कर रही है जो सराहनीय काम है। उन्होने कहा कि भारत का सूफ़ीवाद का सिर्फ भारत मे नहीं बल्कि खाड़ी देशो मे भी प्रभाव बढ़ रहा है, उन्होने ओमान का उदाहरण देते हुये कहा कि ओमान की राजधानी मस्कट मे उनका सेंटर सुन्नी मरकज़ ओमान के और प्रवासियों के बीच मे भारत का सूफ़ीवाद को बढ़ावा दे रहा है और वहाँ के लोगो के बीच ये काफी लोकप्रिय हो रहा है।
प्रतिक्रियावादी नहीं, मुस्लिम युवा हैं रचनात्मक- शुजात क़ादरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर शुजात अली कादरी ने पैग़म्बर मुहम्मद के हर जानदार पर रहम का आदेश दिया लेकिन पेट्रोडॉलर पर पलने वाले आतंकवादी संगठनों के काले कारनामों से हमारा सर नीचा हो गया है। देखा जाए तो इन शैतानी ताक़तों ने इस्लामी जगत को ही नुक़सान पहुँचाया है। लीबिया, सीरिया, इराक़ और बाक़ी स्थलों का हवाला देते हुए कादरी ने कहाकि इसकी बर्बादी करने वाले इस्लाम का नारा लगाता हैं लेकिन वह आतंकवादी हैं। दुनिया की आबादी का मुसलमान 25 प्रतिशत है लेकिन वह मुख्यधारा से बाहर है।
उन्होंने कहाकि इसका रास्ता शिक्षा, व्यापार, संस्कृति, सूफ़ीवाद एवं शोध से निकलेगा। उन्होने कहा कि पूरे अरब में आज इस्लाम के नाम पर सिर्फ़ अशांति ही नहीं बल्कि वहाँ किंगडम के नाम पर सत्ताधारी अधिनायकवादियों ने जनता की आवाज़ को नहीं, बल्कि उदार इस्लाम की आवाज़ को भी दबा दिया है। अधिनायकवाद और इस्लाम के नाम पर वहाबी विचारधारा के प्रसार और प्रश्रय ने लोगों का जीना हराम कर दिया है। आतंकवाद और राजनीतिक संकट की इस घड़ी में अरब के मुसलमान भी भारत की तरफ़ देख रहे हैं क्योंकि भारत में दुनिया का सबसे अधिक मुसलमान अन्य समाजों के साथ शांतिपूर्वक रह रहा है।
दूसरे सत्र मे बोलते हुये डॉक्टर सरवर ने फरमाया कि मुस्लिम समुदाय के सामने ग़रीबी एवं अशिक्षा सबसे बड़ी समस्या है। इससे निपटने के लिए मुस्लिम समुदाय को शिक्षा का स्तर बढ़ाकर धनार्जन एवं व्यापार में आगे आने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होने मुस्लिम युवाओ से कहा कि वो अपने आचरण मे नरमी लाये और सभी के साथ प्रेम और सौहार्द क़ायम करे। उन्होने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के जीवन से हवाला देते हुये कहा कि मानव सेवा से सभी का दिल जीता जा सकता है, इस समय जब समाज मे कुछ शरारती तत्वो की वजह से नफरत फैल रही है, ज़रूरत है कि ख्वाजा साहब से सूफी शिक्षा को आम किया जाये और मानव सेवा को बढ़ाया जाये।
युवा क्रांति और आतंकवाद में अंतर समझें और राष्ट्र निर्माण मे निभाये भूमिका: मुफ़्ती शाहिद
रोशन मुस्तकबिल के मुफ़्ती शाहिद मिसबही ने कहाकि भारत में निर्माण मे मुस्लिम युवाओ को आगे आना होगा उन्होने कहाकि भारत में अब भी कट्टरता वह स्थान नहीं बना पाई है जिसका इरादा हर अशांत प्रवृत्ति के देश, संगठन एवं व्यक्ति चाहते हैं। मिस्बाही ने सूफ़ी परम्परा को याद करते हुए युवाओं से अपील की कि वह क्रांति और आतंकवाद में फर्क़ को समझें। क्रांति बदलाव, शांति, प्रेम और सहअस्तित्व का प्रवाह करती है जबकि आतंकवाद बेगुनाह लोगों की हत्या, अन्याय, भया और अस्थिरता की तरफ़ ले जाता है। इस्लाम की मंशा दुनिया में शांति स्थापना की रही है। आप देखेंगे कि भारत में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. के आने के बाद राजनीतिक स्थिरता, सहअस्तित्व और रूहानी प्रेम की एक अनूठी परम्परा शुरू हुई जो बाद में भक्ति काल से आधुनिक भारत तक व्याप्त है। उन्होने समझाया कि हमें साथ रहकर दुनिया में व्याप्त अशांति और आतंकवाद के माहौल में सूफ़ीवाद के ज़रिए शानदार मिसाल क़ायम करते हुए सामाजिक संदॆश देने का प्रयास करते रहना है। यही हिन्द के सुल्तान ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
देशप्रेम के नारों से कार्यक्रम का आरंभ
इस दौरान हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद, ख़्वाजा का हिंदुस्तान ज़िंदाबाद से आकाश गुंजायमान हो गया। मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा आयोजित इस प्रतिनधि सम्मेलन में संगठन के राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्यो के अलावा के जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली यूनिवर्सिटी के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया।