नई दिल्ली:मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसएसओ) ने बुधवार को “भारतीय सशस्त्र बल और मुसलमानों के लिए अवसर” पर एक राष्ट्रीय सेमिनार वेबिनार आयोजित किया। इस वेबिनार में मुख्य वक्ता के तौर पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के पूर्व कुलपति और लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रो. अख्तरुल वासे ने हिस्सा लिया।
वेबिनार को संबोधित करते हुए एएमयू के पूर्व कुलपति और लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह ने देश भर से जुड़े छात्रों को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़), भारतीय सेना, भारतीय नौसेना, भारतीय वायु सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों में भर्ती की जानकारी दी। उन्होने बताया कि युवाओं को सेना में जाने के लिए किशोरावस्था से ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। उन्होने युवाओं से वर्जिश पर ध्यान देने को कहा। उन्होने कहा कि सेना में अलग-अलग रैंक के लिए भर्ती होती है। युवाओं को चाहिए कि वे उसी के अनुरूप तैयारी करे। हालांकि सेना में जितनी जल्दी भर्ती हो जाये। उच्च पदों पर तैनाती के मौके उतने अधिक बढ़ जाते है। उन्होने कहा कि खेल कोटे से भी सेना में भर्ती होती है। खेल कोटे से भर्ती होने वालों को देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी नियुक्ति मिलती है। इस दौरान उन्होने अपने सेवाकाल से जुड़े किस्सों को भी साझा किया। उन्होने छात्रों और युवाओं से सेना में भर्ती होकर देशसेवा करने की भी अपील की।
वहीं जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रो. अख्तरुल वासे ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि देश में सेना ही एक ऐसा पेशा है। जो इज्जत और एहतराम दिलाता है। उन्होने कहा कि हिंदुस्तान की ज़िम्मेदारी हमारी है। क्योंकि ये न केवल हमारे किए मदरलेंड बल्कि फादरलेंड भी है। उन्होने कहा, जब हजरत आदम अलेहीसल्लाम जमीन पर उतारे गए थे। तो वे हिंदोस्तान की ही जमीन पर उतारे गए थे। ऐसे में हमे अपने मुल्क की खिदमत के लिए आगे आना चाहिए। उन्होने कहा कि मुस्लिम युवाओं को एहसास ए कमतरी से बाहर निकलना होगा। मेहनत के दम पर मुसीबतों और परेशानी के बीच रास्ता निकाल कामयाबी हासिल करनी होगी। जिस तरह कोई सैनिक अपने मिशन पर मुसीबतों और परेशानी से जूझते हुए कामयाबी हासिल करता है।
इस दौरान सेना में मुस्लिम रेजीमेंट के सवाल पर लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह ने बताया कि आजादी के बाद देश में कभी मुस्लिम रेजीमेंट नहीं रही। आजादी से पहले पंजाब रेजीमेंट थी। जो पाकिस्तान चली गई। मुस्लिम रेजीमेंट एक प्रोपेगेंडा है। उन्होने ये भी कहा कि सेना की हर रेजीमेंट में मुस्लिमों की बड़ी संख्या है और वे अन्य देशवासियों के साथ खंधे से कंधा मिलाकर देशसेवा को अंजाम दे रहे है। वहीं प्रो. अख्तरुल वासे ने शहीद ब्रिगेडियर उस्मान का जिक्र किया। उन्होने कहा कि नौशेरा के शेर शहीद ब्रिगेडियर उस्मान इस देश के सबसे बड़े शहीद है। जिनका मजार जामिया मिल्लिया इस्लामिया में है। उन्होने पाकिस्तान के खिलाफ जंग में अपने प्राणों का सर्व्वोच बलिदान दिया और देश की हिफ़ाजत की।
वेबिनार के मेजबान डॉ शुजाअत अली कादरी ने दोनों वक्ताओं का अपना कीमती समय देकर छात्रों में राष्ट्रनिर्माण की भावना कू जागृत करने के लिए धन्यवाद किया और छात्रों से अपील की कि वे राष्ट्रनिर्माण और अपनी कौम ओ मिल्लत की खिदमात को अंजाम देते रहे।