भारत हमारी सिर्फ मातृभूमि नहीं बल्कि पितृभूमि भी है: प्रो. अख्तर-उल-वासे

नई दिल्ली: हजरत निजामुद्दीन स्थित ग़ालिब अकादमी बस्ती में मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (एमएसओ) द्वारा आयोजित “तामीर वतन कन्वेंशन” को संबोधित करते हुए पद्मश्री प्रो. अख्तर-उल-वासे साहब ने कहा कि भारत केवल हमारी मातृभूमि नहीं बल्कि पितृभूमि भी है। उन्होने बताया कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम जब दुनिया में आए तो सबसे पहले वह भारत में ही उतारे गए इसलिए भारत हमारी पितृभूमि भी है। हमारे पुरखों ने भारत को अपना वतन मानकर देश का निर्माण किया। उन्होंने देश के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई। वे हर कालखंड में देश के निर्माण और विकास में अग्रणी रहे। उन्होने कहा कि हम इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल कर और अपने पुरखों के पदचिन्हों पर चलकर अपने देश की सेवा कर रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा कि भारत सूफियों की धरती है। अगर सूफियों की धरती से हमारी वफादारी नहीं होगी तो किस से होगी? वतन से मुहब्बत की सीख हमें क़ुरआन से भी मिलती है। जब हम किसी को अपने प्यारे की मिट्ठी में दफनाया जाता है तो हम कहते हैं कि हम इस मिट्टी से पैदा हुए, हम इसी मिट्टी में वापस मिल जाएंगे और फिर इस मिट्टी से उठ खड़े होंगे। इसलिए अल्लामा इक़बाल ने फरमाया:

पत्थर की मूरतों में समझा है तो खुदा है

खाका वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है

उन्होंने अल्लामा इकबाल के ऐतिहासिक शब्दों को भी दोहराया –

मीरे अरब में ठंडी हवा आई जहाँ से,

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।

प्रोफ़ेसर अख्तर-उल- वासे साहब ने ये भी सलाह दी कि एमएसओ में लड़कियों की भी एक विंग होनी चाहिए। उन्होने कहा कि इस्लाम में पुरुषों से ज्यादा अधिकार महिलाओं को दिये गए है। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम ने अपने जीवन में ही महिलाओं को उनके अधिकारों दे दिए। उन्होने बताया कि सय्यदा ख़दीजा ने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम से शादी के बाद भी कारोबार जारी रखा। उन्होने कहा कि शरीयत का एक तिहाई हमें हज़रत आयशा से मिला। हजरत उम्म सलमा ने राजनीतिक क्षेत्र में प्रतिनिधित्व किया। हजरत इमाम हुसैन की शहादत के बाद हजरत जैनब ने नेतृत्व किया। इसलिए एमएसओ में महिलाओं को जगह देनी चाहिए।

वहीं दिल्ली के उलेमा-ए-इस्लाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती अशफाक हुसैन कादरी ने कहा कि “तामीर वतन कन्वेंशन” का उद्देश्य केवल इतना है कि हम सभी पैगंबर के जीवन की रोशनी में अपने देश का निर्माण करते रहें। हमारे लिए हमारे नबी रोल मॉडल हैं। अगर हमारी कोई नाराजगी या कोई असहमति है, तो हम मिलकर इसका हल निकालेंगे। यह सीख हमें पैगंबर सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम से मिलती है।

देश भर से आए युवाओं को संबोधित करते हुए मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (एमएसओ) के चेयरमेन डॉ शुजात अली कादरी ने कहा कि हम न तो हाकिम  हैं और न ही महकूम, लेकिन हम सत्ता में समान भागीदार हैं। उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि अगर एक घोषणापत्र पूरी दुनिया को एक कर सकता है तो वह पैगम्बर सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम का आखिरी खुतबा है।

मौलाना मुहम्मद जफरुद्दीन बरकती मिस्बाही ने कुरान, सुन्नत और पैगंबर सल्ल्लाहू ताला अलैहि वसल्लम के जीवन में “राष्ट्र निर्माण की व्यावहारिक अवधारणा” को रखते हुए कहा कि अगर हम एक देश का निर्माण करना चाहते हैं, तो पैगम्बर सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम की बातों को माने बिना एक अच्छा देश नहीं बना पायेंगे। क्योंकि जहां नैतिकता और न्याय नहीं, वहां व्यवस्था काम नहीं कर सकती। जहां दमन हो और नागरिकों के एक वर्ग के साथ सौतेला व्यवहार हो, वहां मातृभूमि के निर्माण की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

अधिवेशन का संचालन डॉ. हफीजुर रहमान मिस्बाही ने किया और कहा कि एमएसओ की शुरुआत तीन दशक पहले हुई थी जिससे मैं अपने छात्र जीवन से जुड़ा रहा हूं। संगठन का उद्देश्य पैगंबर साहब के जीवन के आलोक में देशभक्ति की भावना जागृत करना है। मैंने एमएसओ से जुड़े लोगों को देखा है। सभी नैतिक रूप से अद्वितीय पाए गए। उन्होंने कहा कि एमएसओ को प्रोफेसर अख्तर-उल-वासे का संरक्षण प्राप्त है, जो एक स्वागत योग्य बात है।

एमएसओ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुहम्मद मुदस्सर अशरफी ने कहा कि संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अहले सुन्नत वल जमात को बढ़ावा देना है, जो पैगंबर के जीवन का प्रत्यक्ष लक्ष्य है। यह संस्था न केवल इस्लामी शिक्षाओं और मान्यताओं की रक्षा करती है बल्कि छात्रों का मार्गदर्शन भी करती है।

मौलाना मंजर मोहसिन नईमी, मुहम्मद अरमान साबरी, मौलाना उस्मान कादरी, मुफ्ती अब्दुल मुस्तफा बरकती और मौलाना असरारुल हक नईमी और दिल्ली के कई अन्य लोगों ने कन्वेंशन में भाग लिया।

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